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भारत ने ईरान के साथ चाबहार स्थित शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के संचालन के लिए समझौता किया है, जिस पर अमेरिका ने प्रतिक्रिया दी है.
अमेरिका विदेश विभाग का कहना है कि इस समझौते को अमेरिकी प्रतिबंधों से छूट नहीं मिलेगी, हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि क्या अमेरिका, इस समझौते के बाद भारत पर प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहा है.
विदेश विभाग की ब्रीफिंग में उप-प्रवक्ता वेदांत पटेल से जब भारत-ईरान के बीच हुए इस समझौते के बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, "हमें इस बात की जानकारी है कि ईरान और भारत ने चाबहार बंदरगाह से संबंधित एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं."
उन्होंने कहा, "ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध जारी रहेंगे."
वेदांत पटेल से सवाल किया गया कि प्रतिबंधों के दायरे में क्या भारतीय कंपनी भी आ सकती है, जिसने ईरान की कंपनी से समझौता किया है?
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जवाब में पटेल ने कहा कि कोई भी कंपनी अगर ईरान के साथ व्यापारिक समझौते पर विचार कर रही है तो उस पर संभावित प्रतिबंधों को ख़तरा बना रहेगा. उन्होंने कहा कि इसमें भारत को विशेष रूप से कोई छूट नहीं दी जाएगी.
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सोमवार, 13 मई को भारत और ईरान ने एक समझौता किया. यह समझौता 10 साल के लिए चाबहार स्थित शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के संचालन के लिए किया गया है.
यह इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ ईरान के बीच हुआ है.
शाहिद बेहेस्ती ईरान का दूसरा सबसे अहम बंदरगाह है.
भारत के जहाज़रानी मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने ईरान पहुंचकर अपने समकक्ष के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर किए.
साल 2016 में भी ईरान और भारत के बीच शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के संचालन के लिए समझौता हुआ था. नए समझौते को 2016 के समझौते का ही नया रूप बताया जा रहा है.
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कहा कि इस समझौते से पोर्ट में बड़े निवेश का रास्ता खुलेगा.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, इस समझौते के तहत इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड क़रीब 120 मिलियन डॉलर का निवेश करेगी. इस निवेश के अतिरिक्त 250 मिलियन डॉलर की वित्तीय मदद की जाएगी. इससे ये समझौता क़रीब 370 मिलियन डॉलर का हो जाएगा.
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क्या करती है भारतीय कंपनी
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यह समझौता भारत की इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड ने किया है. कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक चाबहार स्थित बेहेस्ती बंदरगाह को विकसित करने के लिए ही कंपनी का निर्माण किया गया था.
इसका उद्देश्य भूमि से घिरे अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के लिए वैकल्पिक रास्ता तैयार करना है.
यह सागरमाला डेवलपमेंट कंपनी की सहायक कंपनी है.
कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक़, यह कंटेनर हैंडलिंग से लेकर वेयरहाउसिंग तक का काम करती है.
इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड ने इस पोर्ट का संचालन सबसे पहले 2018 के आख़िर में शुरू किया था.
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ईरान के परमाणु कार्यक्रम, मानवाधिकार उल्लंघन और चरमपंथी संगठनों को मदद करने के आरोप में अमेरिका ने उस पर बड़े पैमाने पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं.
इन प्रतिबंधों के दायरे में वे बिजनेस और देश भी शामिल हैं जो ईरान के साथ मिलकर काम करते हैं.
इसके चलते कई बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने ईरान के साथ व्यापार करना पहले ही बंद कर दिया है.
विदेशी मामलों के जानकार और 'द इमेज इंडिया इंस्टीट्यूट' के अध्यक्ष रॉबिंद्र सचदेव कहते हैं कि फिलहाल यह साफ़ नहीं है कि अमेरिका भारतीय कंपनी 'इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड' पर प्रतिबंध लगाए या नहीं, लेकिन इसकी संभावना बनी रहेगी.
वे कहते हैं, "प्रतिबंध कई तरह के लग सकते हैं. अगर भारतीय कंपनी पर अमेरिकी प्रतिबंध लगे तो उसके कर्मचारियों को अमेरिकी वीज़ा नहीं मिलेगा. वह अमेरिका के साथ कोई व्यापार नहीं कर पाएगी."
सचदेव कहते हैं, "अगर कंपनी की संपत्तियां अमेरिका या उसके सहयोगी देश में हैं, तो उन्हें वह फ्रीज कर सकती है."
वे कहते हैं कि व्यापार में बैंकिंग सिस्टम का बड़ा काम होता है. प्रतिबंध की स्थिति में यह गाज़ उन बैंकों पर भी गिर सकती है जहां कंपनी के बैंक एकाउंट हैं.
"प्रतिबंध की स्थिति में अमेरिका उस बैंक को 'स्विफ्ट नेटवर्क' से ब्लॉक कर देता है. ये एक ग्लोबल नेटवर्क है जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बैंकों के बीच पैसों का ट्रांसफर होता है."
सचदेव कहते हैं बंदरगाह को चलाने के लिए बड़ी-बड़ी क्रेन की ज़रूरत पड़ती है जो जर्मनी और हॉलैंड जैसे देशों से किराए पर मिलती है, लेकिन प्रतिबंधों की सूरत में इसका मिल पाना मुश्किल है.
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ईरान के तटीय शहर चाबहार में बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच साल 2003 में सहमति बनी थी.
साल 2016 में पीएम नरेंद्र मोदी ने ईरान का दौरा किया था. 15 साल में किसी भारतीय पीएम का ये पहला ईरानी दौरा था. उसी साल इस समझौते को मंज़ूरी मिली.
साल 2019 में पहली बार इस पोर्ट का इस्तेमाल करते हुए अफ़ग़ानिस्तान से माल पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए भारत आया था.
हालांकि साल 2020 में एक ऐसा वक़्त भी आया जब ईरान द्वारा भारत को एक प्रोजेक्ट से अलग करने की रिपोर्ट्स सामने आईं.
चाबहार पोर्ट इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर यानी आईएनएसटीसी के लिए काफ़ी अहमियत रखता है.
इस कॉरिडोर के तहत भारत, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, अर्मीनिया, अज़रबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्ग का 7,200 किलोमीटर लंबा नेटवर्क तैयार होना है.
इस रूट से भारत की यूरोप तक पहुंच आसान हो जाती, साथ ही ईरान और रूस को भी फ़ायदा होता. इस परियोजना के लिए ईरान का चाबहार बंदरगाह बहुत अहम है.
पीएम मोदी के दौरे के दौरान रेल समझौते में देरी को लेकर भी ईरान की नाराज़गी देखने को मिली थी. दिल्ली में हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान जब एक नए ट्रेड रूट को बनाने पर सहमति बनी थी, तब इस परियोजना के भविष्य पर सवाल उठने लगे थे.
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कहा गया कि अगर ये इंडिया-यूरोप-मिडिल ईस्ट कॉरिडोर बन गया तो चाबहार पोर्ट की बहुत अहमियत नहीं रह जाएगी. इसे ईरान की उपेक्षा के तौर पर भी देखा गया था.
मगर अब भारत और ईरान के बीच चाबहार पर अहम समझौता हो गया है तो इसे रिश्तों में जमी बर्फ के पिघलने के तौर पर देखा जा रहा है.
पाकिस्तान और चीन ईरानी सरहद के क़रीब ग्वादर पोर्ट को विकसित कर रहे हैं.
भारत, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान को जोड़ने वाले चाबहार पोर्ट को ग्वादर पोर्ट के लिए चुनौती के तौर पर देखा जाता है.
चाबहार पोर्ट चीन की अरब सागर में मौजूदगी को चुनौती देने के लिहाज से भी भारत के लिए मददगार साबित हो सकता है.
यह पोर्ट चाबहार पोर्ट से सड़क के रास्ते केवल 400 किलोमीटर दूर है जबकि समुद्र के जरिए यह दूरी महज 100 किमी ही बैठती है.
यह बंदरगाह भारत के रणनीतिक और कूटनीतिक हितों के लिए भी बेहद अहम है.
जानकारों का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद भारत का मध्य एशिया से सीधा संपर्क घट गया था.
चाबहार के रास्ते भारत अब ज़रूरत पड़ने पर काबुल तक भी अपनी पहुँच बना पाएगा और साथ ही सेंट्रल एशियाई देशों से व्यापार में भी बढ़ोतरी हो सकती है.
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